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PC क्या है?

PC क्या है?

Last Updated on October 22, 2023 by Mani_Bnl

अगर आप भी पर्सनल कंप्यूटर क्या है? (PC क्या है ? ) और पीसी के मुख्य भाग कौन कौन से है? इन सवालों जबाब ढूंढ रहे है, तो हमारा ये आर्टिकल अंत तक जरूर पढ़े। इस आर्टिकल में हमने पर्सनल कंप्यूटर क्या है? (PC क्या है ? ), PC का फुल फॉर्म, PC का विकास, PC के भेद और पीसी के मुख्य भाग को विस्तार से बताया है। तो आइये विस्तार जानते है पर्सनल कंप्यूटर क्या है? (PC क्या है ? ).

पर्सनल कंप्यूटर क्या है? (PC क्या है ? )

पर्सनल कंप्यूटर माइक्रो कंप्यूटर्स का एक रूप है।  इसको आम बोलचाल  भाषा में पीसी कहा जाता है।  इसका निर्माण समय की जरुरत के कारण हुआ।  जिसे  सभी जानते है की पहले के कंप्यूटर आकर में बहुत बड़े , धीमे और काम विश्वसनीय थे।

उससे भी चिंता की बात यह थी की  कीमत भी बहुत ज्यादा थी, जो की साधारण उपयोगकर्ता की पहुंच से बहुत बाहर थी।  समय के साथ कंप्यूटर के आकर में कमी हुए और उनकी ताकत बढ़ी, कीमत भी नई तकनीकों के कारण कुछ कम हुई , परन्तु तब भी वे केवल बड़ी बड़ी कम्पनियाँ द्वारा ख़रीदे जा रहे थे इसका मुख्य कारण था इसका अधिक मूल्य । 

1970 ई के बाद के समय में माइक्रो प्रोसेसर बनाए गए , जिनसे माइक्रो कंप्यूटर्स  का जन्म हुआ।  ये आकर में बहुत छोटे थे , परन्तु इनकी शक्ति बहुत ज्यादा थी , इनकी कीमत भी ऐसी थी की मध्यम श्रेणी की कम्पनियाँ भी इन्हे खरीद सकती थी।  तभी यह विचार पैदा हुआ की एक ऐसा कंप्यूटर बनाया जाए जो एक आदमी का अपना कंप्यूटर हो और जिसे एक साधारण आदमी भी इसको खरीद सके।

लागत बहुत कम के कारण अमीरों और आम इंसानों की पहुंच में भी आ सकी।  पीसी को चलने के लिए किसी तकनीशियन या विशेष निर्देशों (Commands) की जरुरत नहीं पड़ती है। इसे एक साधारण इंसान भी चला सकता है। पर्सनल कंप्यूटर क्या है? (PC क्या है ? ) को अच्छे से समझने के लिए हमें PC का फुल फॉर्म समझने की जरूरत है।

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PC का फुल फॉर्म:-

PC का पूरा नाम Personal Computer होता है। इसे व्यक्तिगत कंप्यूटर भी कहा जाता है। पीसी शब्द 80 के दशक में लोकप्रिय हुआ। PC को दुनिया की जानी मानी पत्रिका Times Magazine द्वारा 1982 में Man of the year चुना गया।

PC का विकास (Development of PC) :

दुनिया की सबसे बड़ी कंप्यूटर बनाने वाली कंपनी आईबीएम (IBM : International Business Machine ) ने 1980 ई में अपना पर्सनल कंप्यूटर बनाने की घोषणा की इसको आईबीएम -पीसी  कहा गया।  इसकी क्षमता या शक्ति बहुत कम थी। वास्तव में यह केवल कंप्यूटर के शौकिनो के लिए बनाया गया था। 

यह आकार में इतना छोटा था कि  मेज के एक कोने पर भी रखा जा सकता है।  परन्तु यह इतना पसंद किया गया कि सभी कम्पनियाँ पीसी बनाने के लिए दौर पड़ी, इसके साथ ही इनकी ताकत बढ़ाने की भी कोशिश शुरू हुई , जिससे पीसी – एकस्टी (PC – XT) तथा पीसी – एटी (PC – AT) सामने आए। 

प्रारम्भ में प्राय : सभी एमएस-डॉस ऑपरेटिंग सिस्टम पर चलते थे, विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम का विकास होने पर उन्हें विंडोज़ पर चलाया जाने लगा, जैसे जैसे विंडोज़ का विकास होते गया , वैसे वैसे अधिक क्षमता के पीसी की आवश्यकता बढ़ती गयी।  इससे पेंटियम नाम से पर्सनल कंप्यूटर बाजार में आये , जो कि आजकल सबसे ज्यादा प्रचलित है। 

आजकल पीसी इतने लोकप्रिय है कि पुराने बड़े आकार के कंप्यूटर (Mainframe Computer) केवल  उंगलियों  पर गिनने लायक रह गए है।  अब के पेंटियम कंप्यूटर्स की शक्ति बड़े कंप्यूटर्स की शक्ति से टक्कर लेती है , जबकि उनकी कीमत बड़े कंप्यूटर्स की तुलना में बहुत कम है। 

शुरू में पीसी में लगाए जाने वाले प्रोसेसर (Processor) बिट के जाते थे , परन्तु पीसी-एटी तथा पेंटियमों में लगाए जाने वाले प्रोसेसर 16,32 और 64 बिट के होते है। इनकी काम करने की गति बहुत अधिक होती है।

आजकल पुराने पीसी, पीसी-  एक्सटी तथा पीसी- एटी लगभग समाप्त हो गये है और केवल पेंटियम श्रेणी के पीसी अधिक प्रचलन में है।  इनकी गति बहुत तेज होती है तथा भंडारण क्षमता भी काफी अधिक होती है। 

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आईबीएम- पीसी कॉम्पैटिबल (IBM-PC Compatible) :

पीसी बनाने की शुरुआत आईबीएम ने की थी। आजकल सैंकड़ो कम्पनियाँ पीसी बना रहे है , परन्तु उनके सभी पीसी आईबीएम- पीसी  कॉम्पैटिबल है । इसका अर्थ यह है कि वे पीसी आकार , संरचना , हार्ड वेयर , सॉफ्टवेयर और ताकत  आईबीएम-पीसी जैसे होते है। 

इन पर वे सभी सॉफ्टवेयर चलाए जा सकते है , जो  आईबीएम-पीसी पर चल सकते है।  आईबीएम के पास पीसी के सॉफ्टवेयर का बहुत बड़ा भंडार है।  उस सॉफ्टवेयर का लाभ उठाने के लिए सभी कम्पनियाँ अपना पीसी  आईबीएम-पीसी जैसा ही बनाती है।  इस तरह  आईबीएम-पीसी अपने आप ही कंप्यूटर उद्योग के लिए मानक (Standard) बन गया है। 

PC के प्रकार (Kinds of PC) :

पीसी के जन्म से लेकर अब तक पीसी की कई नई  पीढ़ियाँ समाने आ चुकी है। उनमे मुख्य है – पीसी- एक्सटी  (Peronal Computer-Extended Technology),पीसी-एटी( Personal Computer-Advanced Technology),पेंटियम-1 ,पेंटियम-2 , पेंटियम-3 तथा पेंटियम-4. इनमे मुख्य अंतर प्रोसेसर (Processor) और भंडारण क्षमता (Storage Capacity) का होता है। 

पीसी के अंदर लगाए जाने वाले माइक्रो प्रोसेसर इन्टेल -8086 (Intel -8086 ) फॅमिली के होते है। आईबीएम ने अभी शुरुआत ने पीसी के लिए इन्टेल -8086 माइक्रो प्रोसेसर को चुना था। बाद के सभी पीसी में भी इन्टेल फॅमिली के ही प्रोसेसर लगाए जाते है। 

हर पीसी के बारे में सही रूप में जानकारी उनके  मिलने वाले मैनुअलों (Manuals) में दी जाती है। पीसी  पर काम शुरू करने से पहले मैनुअल पढ़ लेना चाहिए और काम करते समय भी मैनुअल को साथ रखें चाहिए , जिससे कि यदि बीच में कोई दिक्कत हो या संदेह हो तो मैनुअल देखकर उसी समय दूर किया जा सके, जिससे की हमे समझने में काफी आसानी होती है। 

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पीसी के मुख्य भाग (Main Parts of PC) :

कोई भी पीसी चाहे किसी भी प्रकार का हो (पीसी-  एक्सटी , पीसी-एटी  या पेंटियम ) और किसी भी कंपनी का बना हो , इसके मुख्य भाग भाग ज्यादातर वही रहते है, जिससे पूरा पर्सनल कंप्यूटर बनता है।  किसी कंप्यूटर के मुख्य भोगों को उसका सिस्टम कॉन्फ़िगरेशन (System Configuration) कहा जाता है। 

पीसी के भाग :

  • सिस्टम यूनिट (System Unit)
  • मदरबोर्ड (Motherboard)
  • मॉनिटर (Monitor)
  • की-बोर्ड (Key-board)
  • प्रिंटर (Printer)
  • फ्लॉपी ड्राइव (Floppy Drive)
  • हार्ड डिस्क ड्राइव (Hard Disk Drive)
  • माउस ( Mouse)
  • सीडी रॉम ड्राइव (CD-ROM Drive)

इनके इलावा कंप्यूटर में जरुरत अनुसार निम्न लिखित भाग भी हो सकते है। 

  • जॉय स्टिक (Joy Stick)
  • स्कैनर (Scanner)
  • स्पीकर (Speaker)
  • माइक (Mike)
  • सीडी-राइटर (CD-Writer). 

सिस्टम यूनिट (System Unit):

यह part  ही वास्तव में असली कंप्यूटर है।  पीसी में होने वाले सभी काम इसी के द्वारा किये या कराए जाते है और यही हमारे प्रोग्राम को सही सही चलने की गारंटी देता है। 

पीसी के अन्य सभी भाग सिस्टम यूनिट के द्वारा ही काम करते है।  यह एक चौकोर बॉक्स होता है , जिसमे पीसी के Motherboard सहित सभी काम करने वाले भाग सुरक्षित रहते है।  सिस्टम यूनिट का आकार डप प्रकार का होता है – डेस्कटॉप टाइप (Desktop Type) और टावर टाइप (Tower Type).

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सिस्टम यूनिट के भाग :

  • पावर स्विच (Power Switch)- इस स्विच से कंप्यूटर को ऑन-ऑफ किया जाता है। 
  • रिसेट बटन (Reset Button)- इस बटन के द्वारा हम अपने पीसी की बिजली बंद किये बिना उसे शुरू कर सकते है।  यह बटन दबाने पर पीसी पर पहले से चल रहे सभी काम ख़त्म हो जाते है। 
  • फ्लॉपी डिस्क ड्राइव (Floppy Disk Drive)- हर पीसी की सिस्टम यूनिट में एक फ्लॉपी डिस्क ड्राइव जरूर होता है , जिसमे सामने की तरफ फ्लॉपी डिस्क लगाई होती है। 
  • सीडी-रॉम ड्राइव (CD-ROM Drive)- हर पीसी की सिस्टम यूनिट में एक सीडी रॉम ड्राइव भी होता है , जिसमे सीडी लगायी जाती है। 

सिस्टम यूनिट के पिछले भाग में उसको पीसी के दूसरे अंगों, जैसे की-बोर्ड , प्रिंटर , माउस आदि से जोड़ने के लिए पोर्ट्स (Ports) बने होते है।  इनके अलावा मुख्य लाइन या यू.पी.एस. से बिजली लेने के लिए उसमे प्लग लगाने के लिए सॉकेट (Socket) भी लगा होता है। 

सिस्टम यूनिट में हमारे प्रोग्रामों का करने वाले कई छोटे छोटे पुजे लगे जाते है। अलग अलग  पीसी में लगे पुर्जे का स्थान भी अलग अलग हो सकता है।  सिस्टम यूनिट का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भाग मदरबोर्ड  होता है।  

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मदरबोर्ड (Motherboard)

यह एक इलॉट्रोनिक सर्किट (Circuit) होता है।  इसे सिस्टम बोर्ड (System Board) भी कहा जाता है।  इनमे पीसी के सभी इलॉट्रोनिक पुर्जों के लिए जगह बनी होती है , जिन्हे किसी धातु (Metal) की पतली रेखाओं द्वारा  एक दूसरे से इस तरह जोड़ा जाता है कि एक कम्प्यूटर का पूरा सर्किट बन जाए, मदरबोर्ड पर निम्नलिखित इलॉट्रोनिक पुर्जों या चिपो के लिए स्थान होता है। 

  • माइक्रो प्रोसेसर या सी.पी.यू (Central Processing Unit) – यह पीसी का सबसे महत्वपूर्ण अंग है।  जो हमारे आदेशों का पालन करके सभी काम करता है। 
  • रैम चिप (Ram Chip) – यह पीसी के काम करते समय जरुरी डाटा तथा प्रोग्राम को कुछ समय तक रखने के लिए होती है।  कंप्यूटर की बिजली बंद कर देने पर रैम में रखा गया सारा डाटा ख़त्म हो जाता है। 
  • रॉम चिप (Rom Chip)-इस चिप में ऐसे प्रोग्राम और डाटा रखे जाते है, जो पीसी की बिजली चालू करते समय ही चलाए जाते है।  कंप्यूटर की बिजली चले जाने पर भी इनमे भरा डाटा या प्रोग्राम ख़त्म नहीं होते। 
  • को-प्रोसेसर का स्थान (Co-Processor Slot) – किसी किसी पीसी में गणितीय क्रियाएँ करने से सी.पी.यू. की सहायता के लिए एक और छोटा प्रोसेसर लगाया जाता है।  इसे सहायक प्रोसेसर कहते है, इसे सहायक प्रोसेसर कहते है , परन्तु यह प्रोसेसर तभी काम में आता है जब आपके प्रोग्राम में इसकी सहायता लेने का आदेश दिया गया है। 
  • अतिरिक्त रैम चिप स्थान (Empty RAM Chip Slots) – रैम मैमोरी को और भी बढ़ाने के लिए ये स्थान छोड़े जाते है।  यहाँ हम अलग से एक या अधिक रैम चिप लगाकर पीसी  मैमोरी का आकार बढ़ा सकते है। 
  • पावर सप्लाई बॉक्स (Power Supply Box) – पीसी के ज्यादातर पुर्जों को लगभग 5 वोल्ट डी.सी. बिजली सप्लाई करने की जरूरत होती है , लेकिन फ्लॉपी ड्राइव तथा हार्ड डिस्क ड्राइव को 12 वोल्ट डी.सी. की बिजली चाहिए। यदि इन पुर्जों को घरेलू लाइन से जोड़ा जाए , तो सभी पुर्जे जल जाएंगे, क्योंकि घरेलू बिजली 220 वोल्ट ए.सी. की होती है।  इसलिए पीसी में एक ऐसा पावर सप्लाई बॉक्स  लगाया जाता है, जो घरेलू ऊँचे वोल्टेज की बिजली को कम वोल्टेज की डी.सी. बिजली में बदल देता है। 
  • डिस्क ड्राइव  कंट्रोल कार्ड (Disk Drive Control Card) –यह एक ऐसा सर्किट होता है , जो फ्लॉपी तथा हार्ड डिस्क ड्राइव की मोटरों तथा उनसे डाटा आने- जाने पर नियंत्रण रखता है। 
  • आउटपुट एडाप्टर कार्ड (Output Adapter Card)- यह पीसी की मेमोरी और आउटपुट साधनों (वीडियू तथा प्रिंटर) के बीच की कड़ी का काम करता है।  जब भी कोई सूचना को मैमोरी से लेकर उसको बाइनरी से असली चिन्हों में बदलकर स्क्रीन या प्रिंटर को भेज देता है। 
  • स्पीकर (Speaker)- ज्यादातर पीसी में अलग अलग तरह की आवाजे निकालने का इंतजाम होता है।  उन आवाजों को स्पीकर द्वारा उत्पन्न किया जाता है।
  • टाइमर (Timer)- यह एक तरह की घड़ी का काम करता है। 
  • इनमे अलावा मदरबोर्ड में और भी कई छोटे छोटे पुर्जे लगाए जाते है। 

मॉनिटर (Monitor ) :

मॉनिटर एक आउटपुट डिवाइस है।  इसको विज़ुअल डिस्पले यूनिट भी कहा जाता है। इसकी दिखावट टीवी की तरह होती है।  मॉनिटर एक आउटपुट डिवाइस है।  इसके बिन अकम्पुटर अधूरा होता है।  यह आउटपुट को अपनी स्क्रीन पर सॉफ्ट कॉपी के रूप में प्रदर्शित करता है।

मॉनिटर मुख्य रूप से 4 प्रकार के  होते है:

  • CRT Monitor
  • Flat Panel Monitor
  • LCD Monitor 
  • LED Monitor.

इन मॉनिटर के बारे विस्तार जानकारी निम्नलिखित अनुसार है –

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CRT Monitor (Cathode Ray Tube):

इस टाइप के मॉनिटर का मुख्य भाग Cathode Ray Tube होता है , जिसे की आम भाषा में Picture tube कहा जाता है।यह मॉनिटर काफी सस्ता और बेहतर रंगों में आउटपुट प्रोवाइड करवाता है।  इस मॉनिटर में इलेक्ट्रान gun लगे होते है जो की इलेक्ट्रान की beam और cathode ray को उतसर्जित करते है।

इलेक्ट्रान beam को electronic grid से पास कराया जाता है , ताकि इलेक्ट्रान की गति को काम किया जा सके।  इस मॉनिटर के स्क्रीन पर फ़ास्फ़ोरस की कोट होती है , जिसकी वजह से इलेक्ट्रान beam टकराते ही pixel चमकने लगते है,और तस्वीर दिखाई देती है। 

Flat Panel Monitor :

CRT तकनीकी के स्थान पर केमिकल और गैसों को  एक पलेट में रखकर उसका प्रयोग डिस्प्ले में किया जाता है।  इनकी स्क्रीन बहुत पतली होती है। यह वजन में हल्का जोन के साथ साथ बिजली की खपत भी काम होती है।

LCD Monitor (Liquid crystal display) :

आजकल ये यह मॉनिटर काफी लोकप्रिय है। CRT मॉनिटर की अपेक्षा यह काफी आकर्षक होते है और यह Digital technology पर आधारित होते है। यह कम बिजली खपत करने के साथ साथ काम जगह घेरता है। इस डिस्प्ले को पहले लैपटॉप में प्रयोग किया गया है।  किन्तु अब यह डेस्कटॉप कंप्यूटर में भी अब इसका इस्तेमाल किया जाने लगा है। 

LED Monitor (Light Emitting Diode) :

यह एक प्रकार का semiconductor device है। इसकी कलर क्वालिटी  भी बाकि कंप्यूटर की अपेक्षा में काफी ज्यादा होती है , और काफी साफ और क्लियर नज़र आती है। एलसीडी की अपेक्षा में यह काफी अच्छा  और इसकी कीमत भी काफी ज्यादा होती है। इसका वजन भी काफी काम होता है और इसकी स्क्रीन भी बहुत पतली होती है। 

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की -बोर्ड (Key-Board) :

पीसी  के जिस भाग के द्वारा हम उस तक अपनी बात पहुंचाते है, यह की -बोर्ड है। इस पर हम अपनी उंगलियों से अलग अलग बटन या कुंजी (key) दबाकर कोई आदेश या डाटा टाइप करते है।जो कुछ भी हम टाइप करते है, यदि वह दिखाने लायक होता है तो टाइप करने के साथ ही स्क्रीन पार दिखाया जाता है।

आदेश या डाटा पूरी तरह हो जाने पर खास बटन रिटर्न (Return)या एंटर (Enter) को दबाकर वह आदेश या डाटा पीसी में भेज दिया जाता है। की-बोर्ड की सहायता से हम कंप्यूटर की सभी शक्तियों और कैपेसिटी का इस्तेमाल कर सकते है।  इसलिए की-बोर्ड जितना सरल और सुविधाजनक होगा ,कंप्यूटर भी उतना ही अधिक यूज़र फ्रेंडली होगा। 

वैसे तो आजकल अलग अलग तरह के पीसी और उनको बनाने वाली कम्पनी के अनुसार कई तरह के  होते है , किन्तु आजकल के की-बोर्ड की कई सरे प्रकार बाज़ारों में उपलब्ध है ,जिन की-बोर्ड की कुंजियों की संख्या भी अलग अलग होती है। सभी की-बोर्ड की अपनी विशेषताएँ होती है। 

प्रिंटर (Printer) :

प्रिंटर एक आउटपुट हार्डवेयर डिवाइस है। जो कंप्यूटर या अन्य डिवाइस पर स्टोर एलोक्ट्रॉनिक डाटा लेता है और पेज  पर उन जानकारी को प्रिंट करता है , जो आमतौर पर स्टैंडर्ड साइज शीट का पेपर होता है। 

कंप्यूटर द्वारा हमारे प्रोग्रामों का पालन करने पर जो परिणाम प्राप्त होते है या रिपोर्ट तैयार होती है आप उसको आपने पास संभाल कर रखने के लिए हम उन परिणामों को या रिपोर्ट को काग़ज़ पर छपवाना चाहते है, यह प्रिंटर द्वारा किया जाता है। प्रिंटर आउटपुट का एक महत्वपूर्ण साधन है। 

इनके दोनों किनारों पर आधा आधा इंच की दूरी पर गोल hole बने होते है। इन hole को प्रिंटर  को रोलर के जबड़े में फंसा दिया जाता है और जबड़े बंद कर दिए जाते है।  इनमे जब भी रोलर घूमता है, कागज़ आगे चलने लगता है और एक पन्ने के बाद खुद ही दूसरा पन्ना आ जाता है , क्योकि सरे पन्ने आपस में जुड़े हुए होते है। 

इन पन्नो पर हेडिंग के अलावा कुछ चीज़ें पहले से छपी हुई हो सकती है।प्रिंटर के प्रकार के होते है। प्रिंटर सबसे लोकप्रिय कंप्यूटर पेरिफेरल्स मे से एक है और आमतौर पर टेक्स्ट और फोटो प्रिंट करने के लिए उपयोग किए जाते है। आजकल कलर प्रिंटर तथा लेज़र प्रिंटर का बहुत उपयोग किया जाता है। 

फ्लॉपी डिस्क ड्राइव (Floppy Disk Drive) :

ज्यादातर छोटे कंप्यूटर में डाटा को सुरक्षित रखने के लिए मिनी डिस्को या फ्लोपीयो का इस्तेमाल किया जाता है। यह डाटा को लाने ले जाने तथा रोज़ाना के काम के लिए एक सस्ता और सरल साधन है।  यह मुख्यत: 2 आकारों में मिलती है साढ़े 5 इंच तथा साढ़े 3 इंच। 

यह ग्रमोफोन के छोटे रिकॉर्ड की तरह प्लास्टिक की एक circular प्लेट होती है, जो मोठे कागज की चोकोर सुरक्षा जैकेट में राखी रहती है।  इसके बीच में एक गोल कटाव होता है तथा जैकेट पर एक ओर ओवल(Oval) के आकर का कटाव होता है , जिसमे से होकर फ्लॉपी पर कोई सुचना या डाटा लिखा या पढ़ा जाता है। 

सुरक्षा जैकेट के एक कोने पर एक छोटा सा आयताकार कटाव होता है।  जिसे लिखने की सुरक्षा का कटाव कहा जाता है। यदि यह कटाव खुला होता है तो फ्लॉपी पर कुछ भी लिखा जा सकता है और पहले से लिखे गए डाटा में परिवर्तन किया जा सकता है।

परन्तु यदि यह कटाव किसी अपारदर्शी टेप या कागज से बंद कर दिया जाए , तो संग्रहित डाटा को न तो मिटाया जा सकता है और न ही परिवर्तित किया जा सकता है।  साथ ही उस पर नया डाटा भी नहीं लिखा जा सकता है। 
फ्लॉपी पर पढ़ने लिखने का कार्य करने के लिए एक फ्लॉपी डिस्क ड्राइव की जरुरत होती है।

इस ड्राइव में फ्लॉपी को उसी तरह लगा दिया जाता है जैसे कैसेट प्लेयर में कैसेट लगाए जाते है।  फ्लॉपी लगाकर उसको बंद कर दिया जाता है।  फ्लॉपी ड्राइव में पढ़ने लिखने का काम करने के लिए एक Read Write Head होता है।  जो सुरक्षा जैकेट में oval के आकर के बने कटाव में से फ्लॉपी पर कुछ लिख या पढ़ सकते है।

इस फ्लॉपी की स्टोरेज क्षमता अलग अलग होती है। क्योकि आज कई सारे नवीन फ्लॉपी डिस्क ड्राइव उपलब्ध है। समय के साथ साथ फ्लॉपी डिस्क में काफी बदलाव आया है। 

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हार्ड डिस्क ड्राइव (Hard Disk Drive) :

हार्ड डिस्क ड्राइव पर फ्लॉपी डिस्क की तरह ही डाटा स्टोर करता है ,पर आकर में फ्लॉपी डिस्क से बड़ी होती है। इसकी स्टोरेज शक्ति भी ज्यादा होती है।  इसमें डाटा लिखने तथा पढ़ने की गति भी बहुत ज्यादा होती है।एक हार्ड डिस्क में 40 मेगाबाइट से लेकर 1000 मेगाबाइट तक डाटा स्टोर किया जा सकता है। 

अब तो नए पेन्टियमों के लिए 1000 गीगाबाइट से लेकर 2000 गीगाबाइट तक की हार्ड डिस्के भी आ गई है। हार्ड डिस्क या तो अपने ड्राइव के साथ कंप्यूटर की सिस्टम यूनिट में ही लगी होती है या उसे अलग से भी लगाया जा सकता है।  आज कल 1000 से अधिक मेगाबाइट स्टोरेज वाले हार्ड डिस्क भी उपलब्ध है। 

हार्ड डिस्क ड्राइव दो तरह के होते है – स्थिर(Fixed) तथा बदलने योग्य (Removable). स्थिर हार्ड डिस्क ड्राइव में डिस्क को बदला नहीं जा सकता। परन्तु बदलने योग्य डिस्क ड्राइव में हार्ड डिस्क को जरूरत पड़ने पर निकाला तथा बदला जा सकता है , ठीक उसी तरह जैसे हम फ्लॉपिया बदलते है।

हार्ड डिस्क बहुत कीमती और नाजुक होती है , इसलिए बदलने योग्य हार्ड डिस्क बहुत कम पाई जाती है।  हार्ड डिस्क को धूल वगैरह से बचाने के लिए एक बंद डिब्बे के अंदर रखा जाता है। थोड़ी सी भी धूल डिस्क की सतह को बुरी तरह खराब कर सकती है। 

छोटे कम्यूटर्स ,जैसे पीसी में हार्ड डिस्क का आकार बहुत छोटा होता है। उसे विंचेस्टर डिस्क (Winchester disk) कहा जाता है।  आजकल प्राय: हर पीसी में विंचेस्टर डिस्क अवश्क होती है। यह डिस्क सिस्टम यूनिट में ही एक हिस्से में लगा दी जाती है। यह आकार में भले ही काफी छोटी होती है।  परन्तु इसमें डाटा भरने की क्षमता मामूली फ्लॉपिया की हजारों गुने से भी ज्यादा होती है। विंचेस्टर डिस्क की भण्डारण क्षमता (Storage Capacity) 40 मेगाबाइट से लेकर कई गीगाबाइट तक होती है। 

हार्ड डिस्क अलग से भी जोड़ी जा सकती है , लेकिन ज्यादातर उसकी जरूरत नहीं होती। किसी पीसी में अगर हार्ड डिस्क ड्राइव होती है , तो उसे ड्राइव C कहा जाता है।  कंप्यूटर को स्टार्ट(Start) या बूट(Boot) करने के वाले मुख्य प्रोग्राम तथा दूसरे सभी आवश्यक प्रोग्राम इसी डिस्क में रखे जाते है। 

जैसे ही कम्प्यूटर (पीसी) का मेन स्विच ऑन किया जाता है। वैसे ही ड्राइव C से बूट करने वाला प्रोग्राम चालू हो जाता है।

 माउस (Mouse) :

किसी किसी पीसी में की-बोर्ड के साथ साथ इनपुट का एक और साधन होता है , जिसे माउस कहा जाता है।  यह एक हाथ में पकड़ा जाने वाला एक छोटा सा डिब्बा होता है , यह एक लम्बे तार (या केबिल) के द्वारा सिस्टम यूनिट से जुड़ा होता है, परन्तु आजकल वायरलेस(Wireless) माउस भी मिलते है जिनसे वायर का झन्झट ख़त्म हो जाता है। 

माउस एक समतल (Plain) सतह , जिसे माउस पैड (Mouse Pad) कहते है, पर हाथ में पकड़ कर खिसकाया जाता है।  इसके निचले तल पर एक रबर की गेंद (Ball) होती है।  जो सभी ओर स्वंत्रतापूर्वक घूम सकती है। इसकी ऊपरी सतह पर दो बटन का प्रयोग करते है, परन्तु कुछ प्रोग्रामों में दाए बटन का भी प्रयोग किया जाता है। 

स्क्रीन पर माउस की स्थिति को दिखाने वाला एक विशेष कर्सर या चिन्ह होता है।  जो ऊपर उठे हुए तिरछे तीर जैसा होता है।  इसे माउस पॉइंटर (Mouse Pointer) कहा जाता है।  यह पॉइंटर माउस की हलचल (Movement) के अनुसार ही हलचल करता है। 

जब हम माउस को हाथ से पकड़कर माउस पैड पर इधर उधर सरकाते है , तो माउस पॉइंटर भी उसी के साथ साथ उसी दिशा में सरकता है।  इस प्रकार माउस को सरकाते हुए हम माउस पॉइंटर को मॉनीटर की स्क्रीन पर कही भी ले जा सकते है। हम माउस के साथ कई प्रकार की क्रियाए करते है , जिनके बारे में संक्षेप में नीचे बताया गया है –

पॉइंटिंग (Pointing) : जब हम माउस को इधर उधर खिसकाकर माउस पॉइंटर को अपने डेस्कटॉप की किसी वस्तु पर लाते है , तो उसे पॉइंट करना कहा जाता है। 

क्लिकिंग (Clicking) : जब हम माउस पॉइंटर को किसी वस्तु या स्थान पर लेकर माउस के बाएं बटन को एक बार दबाकर छोड़ देते है , तो उस क्रिया को क्लिक करना कहा जाता है। 

डबल-क्लिकिंग (Double-Clicking) : जब हम माउस केबाएं बटन से जल्दी जल्दी दो बार क्लिक करते है, तो उस क्रिया को डबल-क्लिक करना कहा जाता है। 

राइट-क्लिकिंग (Right-Clicking) : जब हम माउस पॉइंटर को किसी वस्तु या स्थान पर लेकर माउस के दाएं  बटन को क्लिक करते है, तो इस क्रिया को राइट-क्लिक करना कहा जाता है।

ड्रैगिंग (Dragging) : जब हम माउस पॉइंटर को किसी वस्तु पर लाकर माउस के बाएं बटन को दबाकर पकड़ लेते है और माउस बटन को दबाए रखकर ही माउस पॉइंटर को इधर उधर सरकाते है , तो इस क्रिया को खींचना या ड्रैग करना कहा जाता है। 

ऐसा करने पर वह वस्तु भी माउस पॉइंटर के साथ साथ सरकती है। सभी प्रोग्राम, गेम्स आदि जो ऑपरेटिंग सिस्टम में चलते है , उनमे भी माउस का उपयोग किया जाता है। डेस्क-टॉप पब्लिशिंग (Desk-top Publishing) जैसे कार्यो में भी माउस का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है , जिसमे हम कंप्यूटर की सहायता से पुस्तकें, चित्र , बुकलेट आदि तैयार कर सकते है।

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सीडी-रॉम ड्राइव (CD-ROM Drive) : 

सीडी या कॉम्पैक्ट डिस्क (Compact Disk) एक विशेष प्रकार की डिस्क होती है।  जिस पर डाटा प्राय: एक ही बार लिखा जाता है और फिर उसे कितनी भी बार पढ़ सकते है।  यह एक प्रकार की रीड ओनली मैमोरी (Read Only Memory) ही है। 

इनमे प्राय: ऐसी सूचनाएँ स्टोर की जाती है , जो स्थायी प्रकृति की हो अथवा जिनकी आवश्यकता बार बार पड़ती हो , जैसे टेलीफोन डायरेक्ट्री, हवाई जहाजों की उड़ानों की समय सारिणी, पुस्तकों , पुस्तकालय की पुस्तकों की सूची (Catalogue), क़ानूनी सूचनाएँ , फिल्म, बड़े बड़े प्रोग्राम या पैकेज आदि। 

इन डिस्को पर डाटा स्टोर करने का तरीका फ्लॉपी तथा हार्ड डिस्को से कुछ अलग होता है।  फ्लॉपी तथा हार्ड डिस्को में ट्रैक संकेन्द्रीय वृत्तों (Co-central Circles) के रूप में होते है , वही कॉम्पैक्ट डिस्को के ट्रैक spiral होते है। कॉम्पैक्ट डिस्क इसमें सभी सेक्टर की लम्बाई समान होती हिअ।  इन पर डाटा पढ़ने लिखने के लिए लेज़र तकनीक का प्रयोग  है।  इसीलिए इन्हे ऑप्टिकल डिस्क(Optical Disk) भी कहा जाता है। 

सीडी पर से डाटा पढ़ने का एक विशेष उपकरण द्वारा किया जाता है , जिसे सीडी-रॉम ड्राइव कहते है। आजकल प्राय: सभी कम्प्यूटर्स के साथ सीडी-रॉम डरिए अवश्य होता है , क्युकी सभी तरह के सॉफ्टवेयर अब सीडी पर ही उपलब्ध होते है। सीडी पर डाटा लिखने का कार्य भी एक अन्य विशेष उपकरण द्वारा किया जाता है। 

जिसे सीडी-राइटर (CD-Writer) कहा जाता है।  इनसे सीडी पर स्टोर किये गए डाटा को पढ़ा भी जा सकता है।  आजकल ऐसी कॉम्पैक्ट डिस्क भी उपलब्ध है। जिस पर साधारण फ्लॉपी की तरह डाटा पढ़ा तथा लिखा जा सकता है। 

स्कैनर (Scanner) :

यह इनपुट का एक साधन है , जो किसी कागज़   या ऐसी ही की समतल सतह पर बानी या छपी सूचनाओं या चित्र को अंकीय कोड (Digital Codes) में बदल कर कंप्यूटर में भेज सकता है।  जहां  उस पर विभिन्न क्रियाएँ की जा सकती है।  स्कैनर चार प्रकार के होते है – हाथ से पकड़े जाने वाले (Hand-Held), समतलीय (Flatbed), त्रिआयामी (3-Dimesional) तथा फिल्म स्कैनर (Flim Scanner). 

समतलीय स्कैनर फोटो कॉपियर  के आकर के होते है।  जिस तरह किसी दस्तावेज़ की फोटो कॉपी निकली जाती है उसी तरह ऐसे कान्नेर में दस्तावेज़ को रखकर उसकी इमेज (image) कंप्यूटर से भेजी जाती है।  इसमें जिस चित्र को स्कैन करना होता है , उसे नीचे की ओर करके अर्थात उल्टा रखा जाता है। 

कंप्यूटर नेटवर्क (Computer Network) क्या होता है।

जब दो या दो से अधिक कंप्यूटर्स को आपस में इस प्रकार जोड़ा जाता है की उनमें  से प्रत्येक कंप्यूटर किसी अन्य कंप्यूटर के साथ डाटा का आदान-प्रदान और साधनों का साझा कर सकता है , तो इस व्यवस्था को कंप्यूटर नेटवर्क कहा जाता है। यह नेटवर्क पास पास और दूर दूर भी लगे हो सकते है। 

पास पास लगे हुए कंप्यूटर्स को सीधे केबिलों द्वारा जोड़ा जाता है और दूर दूर लगे हुए कंप्यूटर्स को टेलीफ़ोन तारों या वायरलैस के माध्यम से भी जोड़ा जा सकता है। 

मॉडेम (Modem) :

हमारे कंप्यूटर में जो डाटा भरा होता है वह बाइनरी (Binary) में होता है अर्थात 0 और 1 से बना होता है।  इसकी आप सामान्य केबिलों में होकर एक कंप्यूटर से पास में ही लगे हुए दूसरे कंप्यूटर तक आसानी से और सुरक्षित रूप से भेज सकते है। परन्तु उसे काफी दूर लगे कम्प्यूटर तक नहीं भेजा जा सकता। 

जब हमे कोई डाटा काफी दूर भेजना हो तो मॉडेम का उपयोग करना पड़ता है।  मॉडेम एक मशीन है , जो कंप्यूटर में भरे बाइनरी डाटा को ऐसे सिग्नलों में बदल देता है , जो टेलीफ़ोन तारों से होकर सैंकड़ो किलोमीटर दूर तक लगे हुए कंप्यूटर तक भी भेजे जा सकते है। 

साथ ही यह दूर लगे हुए कंप्यूटर से आने वाले संकेतों को पकड़कर उन्हें  बाइनरी डाटा में बदल देता है। दूर दूर पर लगे हुए दो कंप्यूटर्स में सम्पर्क बनाने के लिए दोनों कंप्यूटर्स के साथ एक मॉडेम भी लगाया जाता है। 

मॉडेम का उपयोग नेटवर्क आधारित अनेक कार्यों में किया जाता है , जैसे इंटरनेट(Internet, इलक्ट्रोनिक मेल (E-Mail), बैंकिंग (Banking), रेलवे रिजर्वेशन (Railway Reservation) आदि।  मॉडेम द्वारा डाटा भेजने व प्राप्त करने की गति किलोबाइट प्रति सैकण्ड (Kilobyte per second or KBPS) में नापी जाती है। 

पर्सनल कंप्यूटर क्या है? (PC क्या है ? ) और पीसी के मुख्य भाग का निष्कर्ष

जैसा की हम सभी जानते है की आज मानव तकनीकी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए बेतहाशा व्याकुल है। आज मानव हर क्षेत्र में नए नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। आजकल संस्थान , स्कूल , कॉलेज , उद्योगिक क्षेत्रों में पीसी का उपयोग बहुत बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।

छोटी  छोटे और बड़ी से बड़ी समस्याओँ  सुलझाने के लिए पीसी का प्रयोग किया जाता है। हमे उम्मीद है की हमारे इस आर्टिकल के जरिये आपको पर्सनल कंप्यूटर क्या है? (PC क्या है ? ) और इसके मुख्य भागों के बारे में और इसका हमारे रोजमर्रा के जीवन में क्या रोल है इसके बारे सम्पूर्ण जानकारी मिल गई होगी। अगर आपके मन में कोई सवाल हो तो हमे कमेंट करे।

Source: Wikipedia

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