Last Updated on December 16, 2022 by Mani_Bnl
राज्य विधान सभा क्या है? और विधान सभा की शक्तियाँ एवं कार्य क्या है? ये सवाल हम सभी के मन में आता है खासकर तब जब चुनावो का मौसम हो। अगर आप भी इन्ही सवालो का जबाब ढूंढ रहे है तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े।
क्योकि इस राज्य विधान सभा क्या है? और विधान सभा की शक्तियाँ एवं कार्य क्या है? आर्टिकल में हमने सरल शब्दो में विस्तार से राज्य विधान सभा क्या है? राज्य विधान सभा की रचना, राज्य विधान सभा में सदस्य बनने के लिए योग्यता, विधान सभा की अवधि या कार्य – काल, और विधान सभा की शक्तियाँ एवं कार्य क्या है? को समझाया है।
इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े। तो आइये बिना किसी देरी के जानते है की राज्य विधान सभा क्या है?
राज्य विधान सभा क्या है?
केन्द्र की तरह ही कानून बनाने का काम विधान मंडल द्वारा किया जाता है। कुछ राज्यों में विधान मंडल के दो सदन हैं जब की कुछ राज्यों में एक सदन है। जहां पर विधान मंडल दो सदन है वहां पर दोनों सदनों के नाम इस प्रकार है – विधान सभा और विधान परिषद।
विधान सभा विधान मंडल का निचला सदन है और प्रत्यक्ष रूप में राज्य की जनता द्वारा वोट के आधार से चुना जाता है। विधान परिषद के सदस्य कुछ अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते है और कुछ नामजद किए जाते है। इसी लिए सारे राज्य में विधान सभा है।
बिहार, महाराष्ट्र,उत्तरप्रदेश,कर्नाटक, आंध्रप्रदेश,तेलंगाना और जम्मू कश्मीर में विधान मंडल के दो सदन थे, जब की और राज्यों में,जैसे की पंजाब,हरियाणा,हिमाचल प्रदेश,राजस्थान, पश्चीमी बंगाल,गुजरात,त्रिपुरा,मणिपुर,मेघालिया,सिकीम,नागालैण्ड,केरल आदि राज्यों में विधान मंडल का एक सदन है।
सारे राज्यों में कानून बनाने के लिए विधान – मंडल की विवस्था की गई है। कुछ राज्यों में विधान मंडल के दो सदन है और कुछ राज्यों में केवल एक ही सदन रखा गया है। विधान सभा दोनों ही तरह के विधान मंडल में है अर्थात दो सदनों वाले विधान मंडल में विधान परिषद की बहुलता है।विधान सभा मंडल का निचला सदन है,जो लोगों की प्रतिनिधत्व करता है।
संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार विधान सभा के हाज़िर समय वोट देने वाले मेम्बरों के ⅔ बहुमत से प्रस्ताव पास करके संसद को विधान परिषद को बनाने या ख़तम करने की विनती कर सकती है।
राज्य विधान सभा की रचना

संविधान में विधान सभा के सदस्यों की गिनती निश्चीत नहीं की गई और ज्यादा से ज्यादा गिनती निर्धारित की गई है।अनुच्छेद 170 के अनुसार विधान सभा में सदस्यों की गिनती 60 से कम नहीं हो सकती और 500 से ज्यादा नहीं हो सकती है। पर संविधान के अनुसार सिक्किम विधान सभा के 30, मिज़ोरम विधान सभा के 30 और गोवा विधान सभा में सदस्यों की संख्या 30 से कम नहीं होगी।
राज्य विधान सभा की यह गिनती राज्य की जनसंख्या के आधार पर निश्चित की जाती है। हरियाणा में एक विधान सभा है और उस सदस्यों की गिनती 90 है।
पंजाब की विधान सभा में 117 सदस्य है।सब से ज्यादा सदस्य उत्तर प्रदेश में है, जिस में विधान सभा के चुने हुए सदस्यों की गिनती 403 है। विधान सभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से लोगों के द्वारा बालिग मत अधिकार के आधार से चुने जाते है और भारत के हरेक औरत पुरुष नागरिक को, जिस की उम्र 18 साल या इस से ज्यादा हो, वोट डालने का अधिकार है।
अनुसूचित,आदिम और पिछरी श्रेयनियो लिए जगह सुरक्षित है,पर उनकी चुनाव सांझी चुनाव प्रणाली के आधार पर होती है। राज्यपाल ऐग्लो इंडियन समुदाई के कुछ सदस्यों को विधान सभा में नामजद कर सकता है, अगर राज्यपाल की नज़र में इस समुदाय की आबादी राज्य में मौजूद हो और इस को चुनाव में काफी प्रतिनिधता ना मिली हो।
राज्य विधान सभा में सदस्य बनने के लिए योग्यता

राज्य विधान सभा में सदस्य बनने के लिए नीचे लिखी गई योग्यता होना जरूरी है।
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह 25 साल की उम्र पूरी कर चुका हो।
- वह किसी भी लाभकारी ओहदे पर ना हो।
- संघी सांसद द्वारा लाए गए योग्यताऐ रखता हो।
- वह दिवालिया या पागल ना हो।
- वह किसी भी अदालत द्वारा इस ओहदे के लिए अयोग्य करार ना किया गया हो।
- राज्य विधान सभा की चुनाव लड़ने वाले आज़ाद उम्मीदवार को अपना नाम दस वोटरों से प्रस्तावित और दस वोटरों से तस्दीक कराना जरुरी है।
अगर चुने जाने से पीछे भी कोई सदस्य किसी अयोग्यता को ग्रहण करे तो मामला राज्यपाल को सौपा जा सकता है।राज्यपाल अपना फ़ैसला देने से पहले चुनाव कमिशनर की राय ले कर उस अनुसार ही अपना फ़ैसला देगा।अगर कोई सदस्य लगातार 60 दिन तक सदन की बैठक में सदन कि आज्ञा के बिना गैर हाज़िर रहे तो उस का पद ख़ाली करार किया जा सकता है। आपको हमारा ये आर्टिकल राज्य विधान सभा क्या है? और विधान सभा की शक्तियाँ एवं कार्य क्या है? अच्छा और उपयोगी लगा हो तो निचे कमेंट में जरूर बताये।
विधान सभा की अवधि या कार्य – काल

विधान सभा की अवधि 5 साल है। सारे सदस्यों का चुनाव एक साथ ही होता है। राज्यपाल 5 साल से पहले भी जब चाहें विधान सभा को तोड़ के चुनाव करवा सकता है। संकट काल में विधान सभा की अवधि को और भी ज्यादा किया का सकता है। यह अवधि एक समय एक साल के लिए और संकट काल की स्थिति के ख़तम होने के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 महीने तक बढ़ाई जा सकती है। अवधि बढ़ाने का अधिकार संघी सांसद को ही है। 1996 में सांसद ने उड़ीसा की विधान सभा की अवधि एक साल बढ़ा दी थी क्यों की 1997 में आम चुनाव से ही साथ में उड़ीसा की विधान सभा की चुनाव कराई जाए।
विधान सभा का अधिवेशन या सत्र
राज्यपाल विधान सभा और विधान परिषद का अधिवेशन किसी भी समय भी बुला सकता है। याद रखने वाली बात ये की अधिवेशन में 6 महीने से ज्यादा समय नहीं बीतना चाहिए। राज्यपाल दोनों सदनों में एक साथ अधिवेशन भी बुला सकता है।
कार्येसाधक संख्या(Quorum)-
विधान सभा की बैठक में कारवाई आरंभ होने के लिए जरूरी है की विधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या का 1/10 भाग या 10 सदस्य ही हाज़िर हो। पर 42 बी संशोधन की इस धारा को लागू नहीं किया गया। इस लिए कोरम की पहली व्यबस्था ही लागू है।
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विधान सभा के सदस्यों का वेतन और भत्ते
विधान सभा के सदस्यों का वेतन और भत्ते राज्य के विधान मंडल द्वारा निश्चित किया जाता है।
विधान सभा के सदस्यों के विशेषाधिकार (Privileges of the Members)–

विधान सभा के सदस्यों को लगभग वहीं विशेषाधिकार है जो सांसद के मैंबर को प्राप्त है। विधान सभा के मैंबर को सदन में भाषण देने की छूट दी गई है। उन के द्वारा सदन में प्रगटाए गए किसी भी विचार या कहीं गई किसी बात के आधार पर किसी भी अदालत में कोई भी मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता। विधान सभा के सदस्य को सदन के सम्मलेन के शुरू होने के 40 दिन पहले से ले कर सम्मलेन के समाप्त होने के 40 दिन बाद तक दीवानी मामलों में गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता।
विधान सभा के अधिकारी(Officers of the Legislative Assembly)-

विधान सभा के एक स्पीकर होता है और एक डिप्टी स्पीकर। इन दोनों की चुनाव विधान सभा के सदस्यों द्वारा अपने में ही होती है। स्पीकर का काम विधान सभा की बैठक में प्रधानगी करना,उस में शांति की वयवस्था को कायम रखना, सदस्यों को बोलने की मंजूरी देना, बिल पर वोट डालवाना और फैसलो का ऐलान करना है।
उस की स्थिति लोक सभा के स्पीकर की स्थिति जैसी है। उस की गैर हाज़री में उस के ओहदे को डिप्टी स्पीकर संभालता है। इन का कोई निश्चित कार्य – काल नहीं। सभा के सदस्य प्रस्ताव पास करके उन को उन के ओहदे से हटा भी सकता है, परंतु उन को हटाए जाने का प्रस्ताव विधान सभा में उस समय पेश हो सकता है जब कम से कम 14 दिन पहले इस महत्व की सूचना उन को पहले ही दी जा चुकी हो।
हटाएं जाने के संकल्प में कारण स्पष्ट होना चाहिए। अगर कारण स्पष्ट नहीं हो तो संकल्प पेश करने की आज्ञा नहीं भी दी जा सकती है। 27 मई,1986 में पंजाब विधान सभा के स्पीकर रवि इंदर सिंह ने अपना इस्तीफ़ा राज्यपाल सिद्धार्थ शंकर रे को भेजा था क्यों की एक हफ़्ते बाद रवि इंदर सिंह ने स्पीकर के ओहदे से हटाने का मत्ता रखने के लिए विधान सभा की बैठक होने वाली थी।
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विधान सभा की शक्तियाँ एवं कार्य क्या है?

जिन राज्यों में विधान मंडल का एक सदन है उधर विधान मंडल की सारी शक्तियों का प्रयोग विधान सभा द्वारा की जाती है और इन में विधान मंडल के दो सदन है उधर भी विधान सभा ज्यादा प्रभावशाली है। विधान सभा की मुख्य शक्तियाँ नीचे लिखी है।
- वैधानिक शक्ति( Legislative Powers )-
विधान सभा को राज्य सूची के 66 विषय और सामवर्ती सूची के 47 विषय से कानून बनाने के लिए बिल पास करने का अधिकार है। अगर विधान मंडल दो सदनी है, या बिल विधान सभा से विधान परिषद के पास जाता है। विधान परिषद अगर उस को रद्द कर दे या तीन महीने तक उस पर कोई करवाई ना करे या उस में ऐसी शोध कर दे या विधान सभा उस बिल को द्वारा एक महीने तक कोई करवाई नहीं करे या उस को रद्द कर दे या उस में ऐसी शोध कर दे अगर विधान सभा को मंज़ूर ना हो, तो तीन हालातों में वह बिल दोनों सदनों द्वारा पास समझा जाएगा।
याद रहे दोनों सदनों की सांझी बैठक बुलाने की व्यवस्था राज्य में नहीं है। दोनों सदनों या एक सदन को पास होने के बाद बिल राज्यपाल के पास भेजा जाता है। वह उस बिल को अपनी मंजूरी भी दे सकता है। उस को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भी भेज सकता है और उस को द्वारा विचार के लिए हिदायत या बिना हिदायत के सदन को वापस भी कर सकता है, परन्तु अगर विधान सभा या विधान मंडल उस बिल को दुबारा पास करके भेज दे तो राज्यपाल को अपनी मंजूरी देनी ही पड़ती है, पर वह राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भी बिल को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है। - वित्तीय शक्तियाँ ( Financial Powers )-
राज्य के वित्तीय शक्तियाँ पर विधान सभा का कंट्रोल है। धन बिल केवल विधान सभा में ही पेश हो सकते है। वित्तीय साल के शुरू होने से पहले राज्य का सालाना बजट भी इस के सामने पेश किया जाता है। विधान सभा की मंजूरी के बीना राज्य सरकार नहीं कोई टैक्स लगा सकती है ना ही कोई पैसा खर्च कर सकती है। विधान सभा से पास होने के बाद धन बिल विधान परिषद के पास भेजा जाता है (अगर विधान मंडल दो-सदनीय है तो ) अगर उस को ज्यादा से ज्यादा 14 दिन तक पास होने से रोक सकती है।
विधान परिषद चाहे धन बिल रद्द करके 14 दिन तक उस को करवाई ना करे या उस दोनों सदनों द्वारा पास समझा जाता है और राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेज दिया जाता है, जिस को धन बिल पर अपनी मंजूरी देनी ही पड़ती है। राज्यपाल की वेतन और भत्ते, विधान सभा के सभा पति और हाईकोर्ट के जज का वेतन और भत्ते, राज्य लोक सेवा आयोग के खर्च आदि राज्य की संचित निधि से किया जाता है।
इस के अलावा और भी ख़र्चो के ऊपर विधान सभा का पूरा नियंत्रण रहता है। इस में वह कोई बढ़ोतरी नहीं कर सकती हैं। विधान परिषद का वित्ती विषय उपर कुछ भी कंट्रोल नहीं है। विधान सभा के इच्छा पर निर्भर करता है की वह इस की सिफ़ारिश को माने या नहीं माने। परंतु राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भी बिल को भेजा जा सकता है। - कार्यपालिका पर काबू ( Control over the Executive)-
विधान सभा को कार्यकारी शक्तियाँ भी मिली हुई है। विधान सभा के मंत्री परिषद पर पूरा नियत्रण है। मंत्री परिषद अपने समूचे काम और नीतियों के लिए विधान सभा के प्रति जवाब देह है।
विधान सभा चाहें तो मंत्री परिषद को हटा भी सकती है। विधान सभा मंत्री परिषद के विरूद्ध संकल्प पास करके या वित्तीय बिल को ना मंज़ूर करके या मंत्रियों की तनख़ा में कटौती करके या सरकार की किसी महत्वपूर्ण बिल को ना मंज़ूर करके मंत्री परिषद को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर सकती है। विधान पालिका के सदस्य मंत्री परिषद की आलोचना कर सकते है, सवाल पूछ सकता है,परंतु हटा नहीं सकते। - संवैधानिक कार्य (Constitutional Functions)-
राज्य विधान सभा को संविधान में संशोधन करने का कोई महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त नहीं है।संशोधन करने का अधिकार संसद को ही प्राप्त है। पर संविधान में कुछ ऐसे अनुच्छेद है, जिनपर सिर्फ संसद शोध नहीं कर सकती। ऐसे अनुच्छेद में शोध करने के लिए विधान मंडलों की मंजूरी ज़रूरी होती है, विधान परिषद के साथ मिल कर विधान सभा संविधान के संशोधन में भाग ले सकती है। - चुनावी कार्य (Electoral Functions)-
- विधान सभा के चुने हुए सदस्य को राष्ट्रपति की चुनाव में भाग लेने का अधिकार है। यह अधिकार विधान परिषद को प्राप्त नहीं है।
- विधान सभा के सदस्य विधान परिषद ⅓ मैंबर ही चुनते है।
- विधान सभा के सदस्य ही राज्य सभा में राज्य के प्रतिनिधियों को चुन के भेजता है।
- राज्य विधान सभा के सदस्य अपने में से एक को ही अध्यक्ष और दूसरे को उप अध्यक्ष चुनते है।
- अन्य कार्य(Other Function)-
राज्य की विधान सभा को कुछ और भी कार्य करना पड़ता है जो की नीचे लिखा गया है। - विधान सभा ⅔ बहु मत से प्रस्ताव पास करके विधान परिषद की स्थापना या समाप्ति की प्रार्थना कर सकती है, और सांसद इस प्राथना अनुसार कानून बनाती है। 7 अप्रैल,1993 को पंजाब की विधान सभा ने विधान परिषद की स्थापना के लिए प्रस्ताव पास किया था।
- विधान सभा विधान परिषद के साथ मिल कर लोक सेवा आयोग की शक्तियाँ बड़ा सकती है।
- राज्य की विधान सभा किसी आदमी को सांसद के खास अधिकार की उलघ्ण करने ऊपर सज़ा दे सकता है, जैसे की 28 अप्रैल, 1977 में हरबंश सिंह बापला नामी युवक ने पंजाब विधान सभा की गैलरी में इस्तिहार फेककर सरकार के विरुद्ध नारेबाज़ी की जिस से विधान सभा ने हरबंश सिंह को एक दिन कि कैद की सज़ा दी थी।
- अगर कोई सदस्य विधान सभा का अनुशासन को तोड़ता है, तो सदन की कारवाई शांति पूर्वक नहीं चलने देता तो सदन उस सदस्य को सदन से बर्खास्त कर सकती है। जैसे की 14 सितंबर,1978 में पंजाब की विधान सभा ने 7 विरोधी सदस्य को बर्खास्त कर दिया था। इन में 6 कमुनिएस्ट पार्टी के और एक मैंबर कांग्रेस दल का था। पंजाब विधान सभा के इतिहास में यह पहली वार हुआ की जब इतने विरोधी दल को बर्खास्त किया गया। 23 जनवरी, 1979 में कर्नाटक विधान सभा के 50 विरोधी मैंबर को 5 फ़रवरी तक बर्खास्त किया गया था ।
- विधान सभा विरोधी दल के नेता ने सरकारी मान्यता देने के लिए और उस को और सहूलत देने के लिए बिल पास कर सकती है। 2 अप्रैल,2003 में पंजाब विधान सभा ने एक बिल पास किया जिस अनुसार विरोधी दल के नेता के वेतन बढ़ा कर 15000 रुपए मासिक भत्ता और कई सहूलयतें दी गई थी जो कैबनिट पधर के मंत्री को मिलती है।
- विधान सभा की स्थिति (Position of Legislative Assembly)–
राज्य के प्रशासन में विधान सभा की विशेष महत्त्व है। जिन राज्यों में विधान मंडल का एक सदन है जैसे की पंजाब, हरियाणा में वहां पर राज्य की समूची वैधानिक शक्तियाँ विधान सभा के पास है। और जहां पर विधान मंडल के दो सदन है वहां पर भी कानून बनाने में विधान सभा ही प्रभावशाली सदन है। विधान परिषद विधान सभा द्वारा पास किए गए बिल को ज्यादा से ज्यादा चार महीने तक रोक सकती है।
राज्य की धन पर पूरा कंट्रोल विधान सभा का हैं। विधान पालिका बित्तीय बिल को केवल 14 दिन तक रोक सकती है। विधान सभा की मंजूरी के बिना ना कोई टैक्स लगाया जा सकता है और ना ही धन खर्च किया जा सकता है। मंत्री परिषद इस के प्रति जवाबदेह है, यहां तक की विधान परिषद की अस्तित्व भी विधान सभा पर निर्भर करती है। विधान सभा की राज्य में वहीं स्थिति है जो केन्द्र में लोक सभा की है।
Conclusion :
हमें उम्मीद है की आपको हमारा यह राज्य विधान सभा क्या है? और विधान सभा की शक्तियाँ एवं कार्य क्या है? आर्टिकल अच्छा और उपयोगी लगा। और विधान सभा से संबंधित जानकारी प्राप्त हो गयी होंगी। हमारे आर्टिकल का उद्देश्य ही आपको सरल से सरल शब्दों में जानकारी प्रदान करवाना होता है , किन्तु अगर आपको मन में कोई सवाल है , तो आप हमे Comments के जरिए बता सकते है। हम आपके सभी सवालों का जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे।
Source: Wikipedia
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उसके बारे में इतना ज्यादा पड़ो इतना ही ज्ञान मिलता जाता है
Thanx sir 📝🤓